भारतीय गिद्ध (कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश)
Indian Vulture (Kanha National park, Madhya Pradesh)
चील, बाज और गिद्ध तीनों ही मांसाहारी, शिकारी पक्षी हैं, इनमें से बाज सबसे छोटे आकार का, चील मध्यम आकार का तथा गिद्ध सबसे बड़ा होता है। गिद्ध सामान्यतः मृत पशुओं (मुर्दाखोर) खाता है शिकार नहीं करता, बाज एक हमलावर शिकारी है, और चील मौकाप्रस्त शिकारी है, जो मृत पशुओं को भी खाता है एवम छीन झपट के भी खाता है।
The Eagle, Hawk or falcon and the Vulture are all three carnivorous, predatory birds, out of which the Hawk is the smallest, the eagle is of medium size and the vulture is the largest. The vulture usually eats dead animals (scavengers) and does not hunt, the hawk is an attacking predator, and the eagle is an opportunistic predator, which also eats dead animals and snatches others hunt.
काली चील (ग्राम कुम्हारी, महासमुंद, छत्तीसगढ़)
Black Kite (Villege Kumhari, Mahasamund, Chhatishgrah)
गरुड, डोगरा चील, कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड
Flying Serpentine Eagle, Corbett National Park, Uttarkhand, India
चील (सबसे ज्यादा पाया जाने वाला शिकारी पक्षी प्रजाति) -
चील शिकारी पक्षी है, तथा मृत जानवरों का भोजन भी करता है अतः इसे शिकारी पक्षी तथा मुर्दाखोर भी कह सकते हैं। सबसे अधिक जनसंख्या वाली शिकारी पक्षी प्रजाति है। इस प्रजाति के कुछ पक्षी जैसे काला चील तो पूरी तरह से मनुष्य के साथ रहना सीख गया है। चील काफी ऊँची उड़ान भर सकते हैं। वे हवा का सहारा लेकर उड़ते हुए काफी ऊंचाई तक चले जाते हैं। और फिर वहां वे हवा में तैरते हुए (ग्लाइड करते हुए) वे अपने शिकार की तलाश करते हैं।काली चील को आजकल शहरों में कूड़े के ढेर के आसपास बहुतायत में देखा जाता है, ऐसा प्रतीत होता है की, काली चील ने मनुष्यों की आबादी के साथ रहना सीख लिया है, मध्यम आकार का यह शिकारी पक्षी भारतीय शहरों के रहने के लिए अनुकूलित हो गया है, जहाँ दूसरे पक्षी मानव गतिविधियों के कारण विलुप्त होते जा रहे हैं वही काली चील अनुकूलन की वजह से शहरों के आसपास अपना अस्तित्व बचाने में सफल रही है, काली चील धुए और आग की तरफ आकर्षित होती है, इसका कारण यह है कि जंगल में आग लगने पर छोटे जीव जंतु इससे घबराकर इधर उधर भागते हैं जिन का शिकार काली चील आसानी से कर लेती। यह मनुष्य की घनी आबादी के नजदीक भी रहने के अनुकूलित हो गई है, मनुष्य द्वारा फेंका गया जानवरों का मांस इसका मुख्य भोजन होता है। लगभग हर भारतीय शहर के आकाश में इसे उड़ते हुए देखा जा सकता है, कई शहरों में यह इंसानों के हाथ से खाने की चीजें छीन कर ले जाती है। मनुष्य द्वारा आहार के लिए पशुओं के मारे जाने के स्थान पर, अथवा ऐसी जगहों पर जहां होटलों, रेस्टोरेंट्स, इत्यादि का कूड़ा फेंका जाता है, वहां इनके झुण्ड अक्सर देखे जा सकते हैं। मनुष्य के साथ रहने के कारण काली चील शिकार पर ज्यादा निर्भर ना रहते हुए मृत जानवरों के मांस खाने के अनुकूलित हो गई।
काली चील (ग्राम कुम्हारी, महासमुंद, छत्तीसगढ़)
Black Kite (Villege Kumhari, Mahasamund, Chhatishgrah)
सडल, शाह चील, कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान उत्तराखंड
Changable Hawk Eagle, Corbett National Park, Uttarkhand, India
ओकाब, रागर, जुमिज चील, (बॉटनिकल गार्डन, रायपुर, छत्तीसगढ़)
Twany Eagle (Botnical Garden, Raipur , Chhatishgrah)
शिकरा , चीपका/ चीपक (मोहरेंगा, छत्तीसगढ़)
Shikra (Mohrenga , Chhatishgrah)
कपासी बाज (ग्राम कुम्हारी, महासमुंद, छत्तीसगढ़)
BLACK SHOULDERED KITE (Villege Kumhari, Mahasamund, Chhatishgrah)
बाज़ (हवा में तेज उड़ान के लिए अनुकूलित)-
बाज पूरी तरह से शिकारी पक्षी एवं शिकार कर अपना भोजन खाता है। जो छोटे-छोटे पक्षियों और जंतुओं को अपना शिकार बनाता है। बाज पक्षी मनुष्य निवास के आसपास पाया जाता है, पर मानव सभ्यता से दूर जंगलों में अधिक पाया जाता है। यह काफी तेज गति से उड़ने में माहिर होते हैं, और पलक झपकते ही अपना शिकार ले उड़ते हैं। बाज़ काफी मजबूत पक्षी होता है, जिसकी छाती की माँसपेशियन सुदृढ़ और काफी विकसित होती हैं। इनके पंख लम्बे और हवा में उड़ने के अनुकूल(स्ट्रीमलाइन) होते हैं, जो इन्हे तेज उड़ने में सहायता पँहुचाते हैं। बाज़ की नाक पर एक ट्यूबर सेल होती है जो रफ़्तार में इसे सांस लेने में मदद करती है। बाज़ दुनियां में सबसे तेज उड़ने वाले पक्षी होते हैं। इनकी गति लगभग 320 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है। बाज़ बत्तख, चमगादड़, चूहे, गिरगिट आदि का शिकार करते हैं।
कपासी बाज ( महासमुंद, छत्तीसगढ़)
BLACK SHOULDERED KITE ( Mahasamund, Chhatishgrah)
गिद्ध (कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश)
VULTURES (Kanha National park, Madhya Pradesh)गिद्ध ( सबसे तेज दृष्टि वाला पक्षी, प्रकृति का सफाईकर्मी )-
मांसाहारी पक्षियों का जब भी जिक्र होता है, तो उसमे गिद्ध का नाम सबसे ऊपर आता है। जो अपने बड़े डील डौल, ताकत और अपने भारी वजन के साथ साथ पैनी और बड़ी चोंच , लंबी पंख रहित गर्दन से आसानी से पहचान में आ जाते हैं। गिद्ध अपनी तेज आँख और मुर्दाखोरी की वजह से काफी मशहूर हैं। इन्हें प्रकृति का सफाईकर्मी भी कहा जाता है। ये पक्षियों की वल्टूराइड (Vulturidae) परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। गिद्ध प्रायः कत्थई और काले रंग के होते हैं। इनकी चोंच आगे की ओर मुड़ी और मजबूत होती है। किन्तु इनके पंजे मजबूत नहीं होते हैं। चील एवं बाजों की तरह इनको अपना शिकार अपने पंजों से पकड़कर उड़ते कम ही देखा गया है। गिद्धों के गर्दन पर रोयें नहीं होते हैं। गिद्ध पूर्णतः जंगली पक्षी है, रसायनों और कीटनाशकों की उपस्थिति का अनुकूलन करने में पूरी तरह असमर्थ है, तथा विलुप्त की कगार पर है।गिद्ध पक्षी प्रजाति जो ऊपर उठती हवा का उपयोग करते हुए बहुत अधिक ऊंची उड़ान भर सकता है, यह गर्म होकर ऊपर उठती हवा अथवा किसी प्राकृतिक रुकावट जैसे ऊंचे पहाड़ के कारण ऊपर उठती हवा का उपयोग कर सोरिंग एवं ग्लाइडिंग फ्लाइट करते हैं, और अपनी उड़ान के समय का 2% से भी कम समय पंख फड़फड़ाने में उपयोग करते हैं। इस प्रकार वह उड़ान में लगने वाली अपनी बहुत अधिक ऊर्जा बचा लेता है। उड़ान में इसे महारत हासिल होने के कारण गिद्ध प्रजाति सबसे ऊंचा उड़ान भरने वाले पक्षियों में जाना जाता है, इस प्रजाति का ग्रीफोन गिद्ध सभी पक्षियों में सबसे अधिक ऊंची उड़ान भरने वाला पक्षी है, जो 29000 फीट की ऊंचाई पर भी उड़ान भरते देखा गया है। (माउन्ट एवरेस्ट 29031 फीट)
राज गिद्ध, मुल्ला गिद्ध, भाओनरा गिद्ध (कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश)
KING VULTURE OR RED-HEADED VULTURE (Kanha National park, Madhya Pradesh)
भारतीय गिद्ध (कान्हा राष्ट्रीय उद्यान, मध्य प्रदेश)
Indian Vulture (Kanha National park, Madhya Pradesh)
इस ब्लॉग की तस्वीरें एवं लेख पक्षियों की निजता में बाधा बने बिना, उचित छलावरण का उपयोग करते हुए, मेरे 12 वर्षों के दृढ़ संकल्पित प्रयासों, बर्डवॉचिंग और जंगल रहने के दौरान किए गए अवलोकन एवं पंछियों पर विभिन्न पुस्तकों से प्रेरित हैं।और अधिक जानकारी के लिए पूरा ब्लॉग पढ़े।
NOTE- The observations were made from a safe hide-out with proper camouflaged clothing and ambience. A considerable distance from the nest was maintained to avoid disturbances during observation. These photographs are collected and observations were made during my 12 years of immense efforts and birdwatching and roaming in the wild.
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